Thursday, October 2, 2025

वणिकों का सबसेे घातक दुश्मन : आशा

 वणिकों का सबसेे घातक दुश्मन : आशा
HOPE-WORST-ENEMY-OF-TRADERS


वणिकों का सबसेे घातक दुश्मन उनकी आशा होती है और यह जानते हुए भी अधिकतर वणिक - ट्रेडर - स्टॉक ट्रेडर - उसी आशा से चिपके रहते हैं इस उम्मीद मेे कि शायद उनको नया जीवन मिल जाय.

मैं हर बार बताता हूं कि मैं न तो निवेश सलाहकार हूं न अनुसंधानकर्ता न विश्लेषक. और मैं कोशिश करता हूं कि कभी किसी चरचा में किसी स्टॉक विशेष का नाम न लूं. फिर भी कुछ मित्र परिचित गाहे बगाहे मेरी सलाह मांगते ही रहते है. शायद उनको लगता है कि मैं एक अनुभवी वणिक हूं और मैं हर स्थिति से गुजरा हुआ हूं. वो जानना चाहते हैं कि उनुका एक ट्रेेड बहुत ही गलत चला गया है और वह उससे निकलने या निपटने में मेेेरे विचार जानना चाहता हूं. यह सारी चरचा अनौपचारिक होती है और इसमें कोई लेनदेन नहीं होता. अधिकतर मामलों मेें जिस स्टॉक के बारे मेें राय मांगी जाती है उस स्टॉक विशेेष में मैं सक्रिय नहीं होता. कई बार तो उस स्टॉक का नाम भी पहली बार सुन रहा होता हूं. 

हर वणिक अपना सबसेे बड़ा दुश्मन स्वंय होता है. उसेे अच्छी तरह याद रहता है कि शिकारी आएगा, जाल बिछाएगा, लोभ से उसमें फंंसना नही. और वह उस सलाह को दुहरातेे हुए किसी न किसी जाल मेें फँसता रहता हैै. आज तक ऐसा कोई वणिक नहीं हुआ जिसनेे नुकसान न उठाया हो. शेयर बाजार का शाश्वत सत्य ही यही है कि बाजार में कुछ भी कभी भी हो सकता है. कबीर जैैसेे लोग भी कहतेे आए हैं कि डूबा वंश कबीर का उपजा पूत कमाल. अलग बात है कि कमाल मेंं भी संभावनायें होती हैं. और उसकी सलाह भी बहुत काम की मिलती है. जैसेे कि - 
चलती चक्की देेख कर हँसा कमाल ठठाय,
कील पकड़ कर जो रहेे कभी ना पीसा जाय.

हर वणिक अगर कील से - बाजार की धुरी सेे, खुद की बनाई रणनीति सेे - चिपका रहे तो अंततोगत्वा उसकी जीत ही होती हैै. मगर वह अक्सर अपनी रणनीति को नजरअंदाज कर देता है  और बाद मेें सोचने लगता हैै कि इस जाल सेे निकलेे कैसेे!

आगे बढ़ने सेे पहलेे इस तथ्य को रेेखांकित करना जरुरी है कि ऐसा होता क्यों है. उसेे लगता हैै कि वह हमेशा सही रहता हैै (रहता नहीं पर उसेे अपनी गलतियां याद नहीं रहतीं अपना सही होना याद रहता हैै) और इस बार भी वह सही ही साबित होगा. उसका इगो उसे वास्तविकता स्वीकार करने सेे रोक देता है और वह अपनी आशा से चिपक जाता है कि बस अब बाजार पलटने ही वाला है, इस कैंडल मेेंं  नहीं तो अगलेे कैंडल में. बाजार पलटता नहीं और वणिक अपने ही बनाए दलदल मेें लगातार धँसता चला जाता है.

किसी भी गलत सौदे से निकलने या निपटनेे का एक ही तरीका होता है - अपनी गलती मानो और सौदा तोड़ दो! जितनी जल्दी स्वीकार कर सको और सौदा काट सको उतना ही बढ़िया. आशा उम्मीद वणिक के लिये जहर होती हैै. और यह जहर जैसेे जैसे अपना असर बढ़ाता जाता है वैैसे वैसे वह इस जहर की खुराक बढ़ाता जाता हैै. 

जो वणिक इस वास्तविकता को स्वीकार कर लेता है वह अंत मेेें विजयी हो कर निकलता हैै. क्योंकि हर सौदा ट्रेेड नहीं हुआ करता. कई सौदेे मिल कर ट्रेेेड बनते हैं. कई बार दस में से तीन बार ही सही रहनेे वाले वणिक भी बहुत लाभ कमा लेतेे हैं और अधिकतर सही रहनेे वाला वणिक नुकसान मेें रहता है. अंतर यही है कि पहली तरह का वणिक अपने दंभ में नहीं रहता, आशा के भरोसेे नहीं रहता. जैसे ही उसेे सौदा गलत होनेे का आभास होता है वह सौदा तोड़ देता हैै. दूसरी तरह का वणिक ऐसा नहीं कर पाता और अपने गलत हो चुके सौदे सेे चिपका रह जाता हैै.

कई वणिक नुकसान उठाने को तैयार नहीं हो पाते. वह चाहते हैं कि कोई ऐसा उपाय हो जिससेे इस नुकसान को कम किया जा सकेे. उसे हर सौदा जीतना होता हैै भले इस क्रम में वह अपने ट्रेेड में गलत साबित हो जाय!

और आज ऐसेे ही सौदे सेे सही सलामत निकलनेे की प्रक्रिया की चरचा करने जा रहा हूं इस लेेख में. पूरा पढ़िए और अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दीजिए. 

मैैंने आज ऐसे ही किसी स्टॉक को गूगल किया तो एक उदाहरण मेेरे सामने आया. इस स्टॉक का नाम मैंने कभी नहीं सुना था और शायद आप भी नहीं जानतेे होंगे. आज मैं उस स्टॉक का चार्ट तो दिखलाऊंगा पर उसका नाम नहीं बताऊंगा. यह एक वास्तविक चार्ट और एकदम ताजा. आज तक का ही है. यह स्टॉक ऐसेे गलत सौदों का एक सटीक उदाहरण हैै. सबसेे पहलेे तो इसका शुरु सेे आज तक का चार्ट देखिए. फर्श सेे शुरु होकर इसको कितनी तेजी से अर्श तक पहुँचाया जाता हैै वह भी देख लीजिए. एक नया नया लिस्टेेड शेयर महीनों तक अपर सर्किट मेे फसा रहता है और नये नये लोग इसका सौदा करतेे चले जाते हैैं. मगर जिस खिलाड़ी नेे या जिन खिलाड़ियों नेे यह खेल शुरु किया था उन्हें अच्छी तरह मालूम था कि कहां निकल जाना है. उसके बाद जो होता है वह भी आपके सामने है. इस चार्ट को दो हिस्सों मेे देखिए. पहला भाग पहली पहाड़ी मेें नजर आता हैै. 


पर असल खेेल दूसरेे चरण मेें खेेला जाता है. लोगों कि इस खंडहर का अतीत याद रहता है और उन्हें लगता है कि यह फिर अपना शिखर छू ही लेगा. और जब दूसरी बार यह खेल शुरु होता हैै तो इस बार बड़ेे बड़ेे वणिक (हो सकता है कि बड़ा वणिक होना उनका भ्रम ही हो) भी इसमे फँस जाते हैं. दूसरों की सलाह पर ट्रेड करने वाले तो फँसने केे लिए होतेे ही है. 

इस दूसरी पहाड़ी का ढलान जब अंत होता नहीं नजर आता तब सोचने लगता है कि कहां फँस गया! अब इससे निकलूं कैैसेे? दो चार दस फीसदी का नुकसान लेकर निकल जाना होता तो निकल भी जाते पर जब नुकसान साठ सत्तर फीसदी का हो तो हिम्मत नहीं हो पाती. और इसके कई उदाहरण भी बाजार मेें दिखते रहते है कि आप जैैसेे ही इस स्टॉक सेे निकलतेे हैं यह उड़ान भरना शुरु कर देता है!


आज इस लेख में मैै इसी स्थिति की चरचा करने जा रहा हूं. जब भी ऐसी स्थिति बन जाय कि आप भी मानने लगें कि इस सौदे मेें फंस गया हूं तो जितनी जल्दी निकल जाईए उतना ही अच्छा. पर अगर आप चाहते हों को आप अपनी पूरी पूंजी भी बचा लेें और इससेे मुक्ति भी पा लेें तब आपको हर उछाल में बेचना और बाद मेें आनेे वालेे गिरावट में खरीद लेनेे का क्रम चलाना पड़ेेगा. जब भी उछाल केे बाद गिरावट मिलेे पूरा सौदा काट दीजिए. पर इस सौदे को भूलिए मत. जब दुबारा गिर कर नये उछाल की तइयारी करेे तब इसेे फिर खरीद लीजिए. बेचने से जितनी राशि मिली थी उस पूरी राशि का उपयोग खरीदनेें मेें करना होगा. स्वाभाविक है कि आपने जितनेे शेयर बेेचे होंंगे उससेे कुछ न कुछ अधिक शेयर खरीद लेेने की स्थिति बनेगी. और यह अतिरिक्त शेयर ही आपका लाभ होगा. हर उछाल केे बाद पूरा सौदा काटिए और जब उछाल के संकेत मिलें तब पूरी राशि से शेेेयर खरीद लेें. इस क्रम में हर गिरावट पर आपके खरीदे शेेयरों की संख्या बढ़ती जाएगी और हर उछाल में राशि की!

 
यह अंतिम उपाय की तरह है. मरता क्या नहीं करता. सब कुछ करियेे पर एवरेजिंग नहीं करिये. उछाल पर बेचनेे के बाद गिरावट में खरीदते समय बढ़ते शेेयर एवरेेजिंग मेें नहीं आते. यह आपके सेेल सेे मिलने वाला लाभ है. अगर इस उपाय सेे काम नहीं बना तब भी एक काम तो बन ही जाएगा कि आपके खाते में  नुकसान बड़ा हो जाएगा पर आपकी कुछ डूबी हुई पूंजी वापस भी मिल जाएगी. इस नुकसान का उपयोग अपने बाकी सौदों सेे मिलने वालेे लाभ पर लगने वाला टैक्स बचानेे मेें हो जाएगा.  आम के आम और गुठली के दाम!




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