Monday, November 24, 2025

शेयर बाजार का क ख ग

 शेयर बाजार का क ख ग




मुझे गलतफहमी थी कि आज के युग में हर व्यक्ति को शेयर बाजार की आवश्यक जानकारी है. परन्तु एक व्यक्ति ने मेरी गलतफहमी दूर कर दी. आज के लेख में मैं अपने को शेयर बाजार के लिये व्यवहृत होने वाले कुछ शब्दों की परिभाषा तक सीमित करूंगा.

शेयर बाजार को हिन्दी में प्रतिभूति बाजार भी कहा जाता है. इस बाजार में कम्पनियों की हिस्सेदारी खरीदी या बेची जाती है. कंपनियाँ अरबों खरबों की हो सकती हैं पर उनुका  एक लघुतम हिस्सा बहुत कम पूंजी में खरीदा जा सकता है. इसी हिस्से को शेयर कहा जाता है. कंपनी की मौजूदा कीमत को उसके शेयरों की संख्या से विभाजित कर के शेयर का दाम निकाला जाता है. और शेयरों के वर्तमान मूल्य को शेयरों की कुल संख्या से गुणा कर के कंपनी का बाजार मूल्य या मार्केट कैपिटल निर्धारित होता है. 

भारत के शेयर बाजार को नियन्त्रित करने वाली संस्था है सेबी SEBI. इसका पूरा नाम भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड Securities and Exchange Board of India है. सेबी देश के प्रतिभूति बाजार पर नजर रखती है और इसे नियमित करती है. 

देश में तीन मुख्य शेयर बाजार हैं - नेशनल स्टॉक एक्सचेंज, बम्बई स्टॉक एक्सचेंज, और मेट्रोपोलिटन एक्सचेंज ऑफ इंडिया. और शेयर बाजारों में शामिल हैं - मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज, नेशनल कमोडिटी एंड डेरिवेटिभ एक्सचेंज, तथा इंडिया इंटरनेशनल एक्सचेंज. 

कई तरह की प्रतिभूतियों में खरीद बिक्री होती है जैसे कि कंपनियों के शेयर, कमोडिटी, करेंसी, क्रिप्टो, बुलियन, बॉण्ड वगैरह. मगर हमलोग अधिकतर इक्विटी (कंपनी शेयर) और उनके डेरिवेटिभ में ट्रेड करते हैँ. कुछ लोग करेंसी (फॉरेक्स), कमोडिटी (कपास, कच्चा तेल, फसल वगैरह) , बुलियन (सोना चाँदी), या क्रिप्टो करेंसी भी ट्रेड करते हैं.

शेयरों की सीधी खरीद बिक्री इक्विटी ट्रेड कही जाती हैँ. इन इक्विटी के आधार पर इनके डेरिवेटिभ जैसे कि फ्यूचर और आप्शन में भी बड़े पैमाने पर ट्रेड किया जाता है. 

शेयरों या प्रतिभूतियों की खरीद बिक्री एक्सचेंज पर होती है. एक्सचेंज ब्रोकरों से जुड़ा होता है और ट्रेड करने वाले इन ब्रोकरों से. देश के मशहूर ब्रोकरों में जिरोधा, ग्रो, पेटीएम मनी, आईसीआईसीआई सिक्यूरिटीज, एचडीएफसी सिक्यूरिटिज, एचडीएफसी स्काई वगैरह के नाम लिये जा सकते हैँ. इनके अलावा भी बहुत से ब्रोकर हैं. 

शेयर खरीदने या बेचने वाले अपने पसन्द के ब्रोकर के यहाँ खाता खोलते है. ब्रोकर आपकी पहचान सुनिश्चित करने के लिये आपका फोटो, आधार कार्ड, पैन कार्ड, हस्ताक्षर, और आपके बैंक खाते की जानकारी लेता है. शेयरों की खरीद बिक्री नकद नहीं हो सकती. रुपया आपके बैँक खाते से निकलेगा या  उसी खाते में जमा होगा. ब्रोकर आपका डीमैट खाता खोल देता है जहां आपके द्वारा खरीदे गये शेयर या प्रतिभूति रखे जाते हैं. जब आप इसे बेचते हैं तो वहीं से इन्हें निकाल लिया जाता है. डीमैट खातों का संचालन करने वाली संस्थाऐं हैं  National Securities Depository Limited (NSDL) और Central Depository Services Limited (CDSL). आपके द्वारा खरीदे गये शेयर ब्रोकर के पास न होकर इन डिपोजिटरीज में रखे जाते हैँ और ब्रोकर आपके शेयरों का गलत उपयोग नहीं कर सकते. जब आप अपने ब्रोकर से मार्जिन मनी लेते हैँ तो उसके लिये आप इन शेयरों को उनके नाम गिरवी pledge रख देते हैँ. इस प्रक्रिया के लिये डिपोजिटरीज सीधे आपसे स्वीकृति प्राप्त करती हैं. इस तरह आपका निवेश और पूंजी पूरी तरह सुरक्षित रहती है. इस पूरी प्रक्रिया की निगरानी सेबी करता है. 

एक बार जब आपका डीमैट खाता खुल जाता है तब आप अपने ब्रोकर के एप या वेबसाइट पर जा कर शेयरों को खरीद या बेच सकते हैँ. 

शेयर तीन तरह से खरीदे बेचे जाते हैँ. डिलिवरी, इन्ट्राडे, और एमटीएफ के तहत. 

डिलिवरी में जब आप कोई शेयर खरीदते हैं तो आपको उसका पूरा मूल्य ब्रोकर को देना होता है और आपके खरीदे शेयर अगले दिन या दूसरे दिन आपके डीमैट खाते में आ जाते हैं. इन खरीदे गये शेयरों को आप उसके बाद ही बेच सकते हैं. पर कुछ ब्रोकर आपको आज खरीदो कल बेच दो वाली सुविधा भी देते हैं जिनका उपयोग कर आप इन शेयरों को डिलिवरी से पहले भी बेच पाते हैं. सामान्यतया डिलिवरी में खरीदे  गये शेयर उसी दिन बेचे नहींं जा सकते. डिलीवरी में जब आप कोई शेयर बेचते हैं तब वे शेयर आपके डीमैट खाते में उपलब्ध होने चाहिये. डिलीवरी में बेचे गये शेयरों को उसी दिन खरीदा नहीं जा सकता.

इन्ट्राडे में खरीदे या बेचे गये सौदों को उसी दिन बाजार बन्द होने से पहले निपटा लेना होता है वरना आपका ब्रोकर बिना आपकी परवाह किए उस सौदे को निपटा सकता है और इस प्रक्रिया में होने वाले नुकसान की भरपाई आपको करनी पड़ती है. 

मार्जिन पर खरीदे या बेचे गये सौदों का निपटान अपनी सुविधा या इच्छा से उसी दिन या बाद में भी किसी दिन कर सकते हैं. मार्जिन पर खरीदे गये शेयरों का मार्जिन अगर आपके ब्रोकर द्वारा दिया जाता है तो ब्रोकर आपसे उसका ब्याज वसूलता है. साथ ही प्रतिदिन इस मार्जिन को तय किया जाता है और अगर मार्जिन कम पड़ रहा हो तो आपको मार्जिन कॉल आयेगा और आपको तुरत वह  कमी दूर करनी पड़ेगी. अगर आप मार्जिन  की कमी पूरी नहीं कर पाते तो  आपका ब्रोकर आपका शेयर बिना पूछे बेच देगा और उससे होने वाले नुकसान की भरपाई भी आपको ही करनी होगी.

खरीदने या बेचबे के लिये शेयरो का चुनाव दो तरीको से किया जाता है. फंडामेंटल और टेकनिकल. फंडामेंटल विश्लेषण के लिये संबंधित कंपनी के काम, उसके मैनेजमेंट, उसकी वगैरह का निरीक्षण किया जाता है. यह विश्लेषण हर आदमी नहीं कर पाता. सो उनके लिये टेकनिकल विश्लेषण काम आता है. इस टेकनिकल विश्लेषण में शेयरों के मूल्य में आने वाले उतार चढ़ाव को देखा जाता है. इसे अधिकतर लोग कैंडल चार्ट देख कर करते हैं. मगर कैंडल का अलावा दूसरे तरीके भी होते हैं जैसे कि रेंको चार्ट, रेंज बार, कागो, लाइन चार्ट वगैरह,
कँडल चार्ट सबसे अधिक उपयोग में लाया जाता है.
 
टाइमफ्रेम का अर्थ होता है कि आप किस अवधि के कैंडल का उपयोग कर रहे है. कैन्डल चार बिन्दुओ   बनता है. पहला बिन्दू उस समयावधि में शुरु का मूल्य, अधिकतम मूल्य, न्यूनतम मूल्य, और आखिरी मूल्य के आधार पर कैंडल बनते हैं. इसे ओपन, हाई, लो, और क्लोज के नाम से भी जाना जाता है. स्वाभाविक है कि हर समयावधि में ये बिन्दू अलग अलग जगहों पर बनेंगे और हर समयावधि का कैडल अलग अलग हो सकता है.

टाइमफ्रेम का चयन ट्रेडिंग के तरीकों के आधार पर किया जाता है. अगर आप लगातार चार्ट देख सकते हैँ और आपको स्काल्पिंग या डे ट्रेडिंग करना हो तो यह समयावधि छोटी होती है. स्विंग पोजिशनल बाइ एंड होल्ड ट्रेडिंग में यह समयावधि सामान्यतया लंबी  रखी जाती है. जितने लबे समय तक आप इसे रखना चाहते हैँ उसी के अनुरुप समयावधि कम या अधिक रखी जाती है. 

स्काल्पिंग ट्रेडिंग बहुत कम अवधि के चार्ट के आधार पर की जाती है. इसके लिये सामान्यतया 1 मिनट से 3  मिनट तक की  अवधि चुनी जाती है. स्काल्पिंग करने के लिये बहुत अधिक पूंजी, तकनीकि दक्षता, और तीव्र गति से निर्णय लेने की क्षमता अनिवार्य जैसी होती है. 

डे ट्रेडिंग में एक ही दिन में शेयरों की खरीद बिक्री कर दी जाती है. इसके लिये अधिकतर लोग 5 मिनट से 25 मिनट तक का चार्ट देखते हैँ. 1, 3, 5, 15, 25 मिनट वाले चार्ट चुनने का एक कारण यह भी होता है कि हमारे देश में शेयर ट्रेडिंग सुबह 9:15 से अपराह्न 3:30 के बीच किया जाता है. यह अवधि कुल 375 मिनट की होती है जिसे 1,3,5,15, 25 से बराबर अवधि में विभाजित किया जा सकता है. 2, 4, 10 मिनट या अलग की अवधि में 375 को बराबर बराबर नहीं बाँटा जा सकता. और इसके कारण इंडिकेटरों के उपयोग में थोड़ा बहुत अन्तर आ जाता है. 

स्विंग ट्रेडिंग में नीचे के मूल्य पर खरीद कर उपर के मूल्य पर बेच दिया जाता है. यह झूले की तरह होता है. एक तरफ से आता है फिर दूसरी तरफ जाता है. इसलिये जब निचले स्तर पर मूल्य आने पर लोग खरीद लिया करते हैँ और जब मूल्य उपरी सीमा तक चहुँपता है तो बेच दिया जाता है. यह उदाहरण सिर्फ इसलिये दिया गया है कि आम ट्रेडर शॉर्ट सेल नहीं कर सकता, या उसे करने नहीं दिया जाता क्योंकि शॉर्ट सेलिंग बहुत जोखिम वाला काम होता है. 

लांग बाई उसको कहते हैं जब आपके पास पूंजी कम होती है ओर खरीदे गये शेयरों का मूल्य अधिक होता है. इस कमी को ब्रोकर आपको मार्जिन देकर पूरा कराते है.
शॉर्ट सेल उसको कहते हैं जब आपके पास शेयर नहीं होते फिर भी आप उसे बेच देते हैं. 

मान लीजिये कि आपने 1000 रुपये के शेयर लांंग बाई किया है और खरीदने के बाद इसका मूल्य नीचे जाने लगता है तब आपका अधिकतम नुकसान 1000 रुपये तक का ही होगा. जबकि लाभ की सीमा नहीं होती. मूल्य कितना भी बढ़ जाय. मगर यदि आपने उस शेयर को 1000 रु में बेच दिया है जो आपके पास है ही नहीं तब आपको अधिकतम लाभ 1000 रुपये तक का ही हो सकता है मगर नुकसान असीम हो जाता है क्योंकि उस का मूल्य किसी सीमा तक चढ़ सकता है. 

फ्यूचर और आप्शन के आप्शन ट्रेड में बिकवाल कॉल आप्शन बेचते हैं जबकि लिवाल पुट आप्शन. इसके ठीक उलट आम वणिक या ट्रेडर आप्शन खरीदता है. आप्शन बेचने वाले को असीम नुुकसान हो सकता है पर अधिकतम लाभ उतना ही होगा जितने पर उसने वह आप्शन बेचा है. जबकि आप्शन खरीदने वाले के लिये अधिकतम नुकसान उतना ही हो सकता है जितने पर उसने वह आप्शन खरीदा है जबकि उसके लाभ की कोई सीमा नहीं होती. 

सवाल उठता है कि तब अधिकतम आप्शन खरीददार नुकसान में कैसे रहते हैं और अधिकतम आप्शन विक्रेता मुनाफे में? वह इसलिये कि आप्शन की कीमत गुजरते समय के साथ घटती जाती है. मान लीजिये कि किसी ने 25000 स्ट्राइक रेट का आप्शन बेचा है तो यदि मूल्य उसके नीचे गिरता है तो बेचने वाला फायदे में रहता है. और यदि मूल्य स्थिर रह गया तब भी आप्शन का मूल्य घटता जाता है और बेचने वाला फायदे में रहता है. जबकि आप्शन खरीदने वाले के लिये यह इस के विपरीत होता है.  

कैंडल चार्ट के विश्लेषण के लिये तरह तरह के संकेतक यानि  इंडिकेटर उपयोग में लाये जाते है. हर इंडिकेटर का वर्णन इस लेख की सीमा के बाहर है. मगर इतना हमेशा याद रखिये कि आजतक कोई इंडिकेटर ऐसा नहीं बना है जो हर बार सही साबित हो. दुर्भाग्य से अगर ऐसा कोई इंडिकेटर बन गया तो शेयर बाजार का वह आखिरी दिन होगा. इसलिये हर इंडिकेटर कई बार सही होता है और कई बार गलत. 

इसीलिये वणिक यानि कि ट्रेडर तरह तरह की रणनीति - स्ट्रेटेजी - बनाते हैं. इनके साथ भी वही बात सही है जो इंडिकेटरों के लिये. कोई भी रणनीति हर बार सफल नहीं होती, हो भी नहीं सकती. 

इसलिये आप कोई भी इंडिकेटर - संकेतक - चुनिए, कोई भी रणनीति बनाईए आप हमेशा सही साबित नहीं हो  सकते. 

इसी लिये वणिक रिस्क रिवार्ड अनुपात की बात करते हैँ. यह रिस्क रिवार्ड अनुपात भी हर वणिक के लिये अलग हो सकता है, अलग होना भी चाहिये. अगर  आप असफल होकर एक रुपये का नुकसान उठाते हों और सफल होने पर एक से ज्यादा का मुनाफा होता है तो अधिक बार गलत होकर भी आप फायदे में रह सकते हैं. मगर अगर आपने गलत रिस्क रिवार्ड अनुपात का चयन किया है तो आपको नुकसान होने की संभावना ज्यादा होती है. 

आज का लेख कुछ लंबा हो गया और फिर भी सारी बातें चर्चा में नहीं आ पाईं. हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता वाली शैली में कहें तो शेयर बाजार एक अबूझ पहेली है. 

आप अपने प्रश्न पूछिए. कोशिश करुंगा कि आपको उत्तर दे पाऊँ. पर आपके हर प्रश्न का उत्तर मैं नहीं दे पाऊँगा क्योंकि बहुत से प्रश्न ऐसे हैं जिनका उत्तर मैं स्वयं खोज रहा हूं. मैं आपको कोई सलाह नहीं देता, दे भी नहीं सकता क्योंकि स्वंय लाखों का नुकसान उठा चुका हूँ और मैं न तो प्रशिक्षित और प्रमाणित विश्लेषक हूं न सलाहकार. क्या खरीदें क्या बेचें, कब खरीदें कब बेचें यह सब आप जानिए. जानने की कोशिश करिए. पूंजी आपकी होगी, फैसला आप का होगा, और लाभ हानि भी आपकी ही होगी.

हर वणिक को अपनी शैली बनानी पड़ती है कि किस संकेतक का उपयोग करेगा, किस रणनीति का उपयोग करेगा, किस तरह की ट्रेडिंग करेगा. जो मेरे लिए सही है वह आपके लिए भी सही ही हो इसकी संभावना बहुत कम होती है. सत्य एक ही है पर विद्वान उसका अलग अलग वर्णन करते है. विप्र बहुधा वदन्ती !

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