Thursday, March 20, 2025

आशा से हुलसना और आशंका से झुलसना

आशा से हुलसना और आशंका से झुलसना

बहुत पहले एक उपन्यास में पढ़ा था कि आशा से हुलसना और आशंका से झुलसना खत्म होते ही प्यार मर जाता है. मगर जबतक आशा से हुलसना और आशंका से झुलसना बन्द नहीं कर पाइयेगा तब तक आप एक सफल वणिक नहीं बन सकते. क्योंकि वणिकई - trading - में आशा और आशका का द्वन्द्व हमेशा चलता रहता है और एक सफल वणिक को इससे मुक्त होना बहुत ही जरुरी होता है.

और यहीं याद आ जाती है शिवमंगल सिंह 'सुमन' की एक कविता -

यह हार एक विराम है
जीवन महासंग्राम है
तिल-तिल मिटूँगा पर दया की भीख मैं लूँगा नहीं।
वरदान माँगूँगा नहीं।।

स्‍मृति सुखद प्रहरों के लिए
अपने खंडहरों के लिए
यह जान लो मैं विश्‍व की संपत्ति चाहूँगा नहीं।
वरदान माँगूँगा नहीं।।

क्‍या हार में क्‍या जीत में
किंचित नहीं भयभीत मैं
संधर्ष पथ पर जो मिले यह भी सही वह भी सही।
वरदान माँगूँगा नहीं।।

लघुता न अब मेरी छुओ
तुम हो महान बने रहो
अपने हृदय की वेदना मैं व्‍यर्थ त्‍यागूँगा नहीं।
वरदान माँगूँगा नहीं।।

चाहे हृदय को ताप दो
चाहे मुझे अभिशाप दो
कुछ भी करो कर्तव्‍य पथ से किंतु भागूँगा नहीं।
वरदान माँगूँगा नहीं।।

- शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

(साभार - कविता कोश  )

अलग बात है कि एक बार भारत के पूर्व प्रधानमंत्री कवि हृदय  स्व. अटल बिहारी बाजपेयी ने इस कविता का पाठ कर के इसे इतना विस्तार दे दिया कि बहुतों को लगता है कि यह उन्हीं कि कविता है.

कवि ने इस कविता को जिस भी अभिप्राय से लिखा हो पर आज मैं इस कविता का उपयोग वणिकई के सन्दर्भ में करने जा रहा हूं.  आशा से हुलसना और आशंका से झुलसना बन्द कर देना ही पर्याप्त नहींं है.

शिवमंगल जी कि कविता की पंक्ति है -
यह हार एक विराम है
जीवन महासंग्राम है

एक वणिक को इससे यही सन्देश ग्रहण करना चाहिये कि वणिकई में मिली हार जीवन का अन्त नहीं. मुझे वणिकई आती नहीं पर -
तिल-तिल मिटूँगा पर दया की भीख मैं लूँगा नहीं।
वरदान माँगूँगा नहीं।।

मैँ यह संग्राम जीतने के लिये लड़ता रहूंगा. किसी से कोई टिप्स नहीं लूंगा. किसी दूसरे की सलाह पर मैं अपना ट्रेड कदापि नहीं लूंगा.

क्‍या हार में क्‍या जीत में
किंचित नहीं भयभीत मैं
संधर्ष पथ पर जो मिले यह भी सही वह भी सही।
वरदान माँगूँगा नहीं।।

मेरा ट्रेड मुझे लाभ दे या नुकसान, मैं अपने निर्णय के हिसाब से, अपनी रणनीति के हिसाब से ही ट्रेड करूंगा. और इस क्रम में जो भी परिणाम आए मैं उसका स्वागत करूंगा. किसी दूसरे की सलाह पर मैं कोई सौदा नहीं करुंगा.

लघुता न अब मेरी छुओ
तुम हो महान बने रहो
अपने हृदय की वेदना मैं व्‍यर्थ त्‍यागूँगा नहीं।
वरदान माँगूँगा नहीं।।

मेरी अनुभव हीनता का आभास दिलाना जरुरी नहीं. तुम बहुत बड़े वणिक हो बने रहो, मैं अपनी स्वंय की रणनीति का त्याग नहीं करने जा रहा. किसी भी स्थिति में मैं आपसे सलाह नहीं मांगने जा रहा.

चाहे हृदय को ताप दो
चाहे मुझे अभिशाप दो
कुछ भी करो कर्तव्‍य पथ से किंतु भागूँगा नहीं।
वरदान माँगूँगा नहीं।।

तुम मुझे कितना भी बेवकूफ समझो. मुझे कितना भी बुरा भला कहो पर मैं अपनी योजना,  अपनी रणनीति छोड़ने नहीं जा रहा. किसी भी स्थिति मे मैं आपसे सलाह नहीं लेने जा रहा.

आप को भी लगता होगा कि यह शैली तो निश्चित गर्त में ले जायेगी. पर यह उतना निश्चित भी नहीं जितना आप इसे बतलाने की कोशिश करेंगे. अपनी रणनीति पर टिके रहने का अर्थ यह नहीं होता कि आप अपने अस्त्रों को धार देना बन्द कर देंगे. बढ़िया से बढ़िया रणनीति भी शत प्रतिशत सफलता नहीं देती. आप को अपने पसन्द की रणनीति, अपनी क्षमता के अनुसार योजना बनाना ही होगा. जैसे जैसे आप इस मार्ग पर आगे बढ़ते जायेंगे आप अपनी असफलताओं से सीखते भी जायेंगे और तदनुसार अपनी योजना में अेक्षित सुधार भी करते जायेंगे.

और शोध प्रबन्ध लिखने बैठने से पहले जरुरी है कि आपने अपनी शुरुआत ककहरा सीख कर ही करें. गुरु से ज्ञान लेना चाहिये पर अपने मार्ग पर उस ज्ञान का प्रयोग अपने अनुभवों से परिमार्जित भी करते रहना चाहिये.


Wednesday, March 5, 2025

मरी बिल्ली की उछाल

हिन्दी में इस शीर्षक को समझने के लिए अगर "डेड कैट बाउन्स" कहा जाय तो शेयर चर्चा करने वाले लोग सहजता से समझ लेंगे. कल और आज शेयर बाजार में सुधार के लक्षण दिखाई दे रहे हैं. पर जानकार सलाहकारों की चेतावनी है कि यह मरी बिल्ली की उछाल भी हो सकती है. अगर मरी बिल्ली काफी ऊँचाई से गिरे तो गिरने के बाद उछलती दिख सकती है, या यों कहिये कि लग सकती है.

सो मैंने देखना चाहा कि पिछले सात आठ साल की निफ्टी की चाल देख ली जाय. लम्बी अवधि के इस चार्ट को देखने के लिये मैंने साप्ताहिक कैन्डल का चुनाव किया और परिणाम आपके सामने है -


इस चार्ट को देखने के बाद आप भी मानेंगे तो देश के शेयर बाजार में कोई बहुत बड़ी अनहोनी नही हो गई है. बाजार कभी सीधी रेखा में नहीं चलता. कभी ऊपर तो कभी णीचे मगर लम्बी अवधि में यह ऊपर जाता हुआ ही दिखेगा. इसी कारण बाजार की कहावत है कि खरीदो और भूल जाओ. छह सात आठ साल के बाद देखोगे तो निवेश के सारे तरीके इसके सामने गौण हो जायेंगे.

मगर क्या यह हमेशा ही सच होता है ? जीवन्त भाषा की तरह शेयर बाजार की भाषा भी नये नये कहावत गढ़ती है. पहले के जमाने में शेयर निवेश का यही तरीका प्रचलित था कि खरीद लो और बने रहो - Buy and Hold ! तब के निवेशक कहीं और से नियमित आय प्राप्त करते थे और अपनी बचत का एक छोटा हिस्सा शेयरों में निवेशित कर के रखते थे. उन निवेशकों का जमाना बदल रहा है. अब शेयर बाजार में नौजवानों की संख्या बहुत अधिक हो गई है और यह वर्ग चट मंगनी पट व्याह की बात अधिक पसन्द करता है. जन्म जन्मान्तर का संबंध अब अपवाद होने लगा है. अब तो लिव इन का दौर आ गया है. इस लिये बाजार की वह कहावत अब उतनी प्रभावी नहीं रह गई है खास कर उन लोगों के लिये जो अपना खर्च शेयर बाजार से निकालने की जुगत भिड़ाते रहते हैं.

ऊपर दिये गये इस चित्र से आप भी मानेंगे कि जब इस उर्ध्वगामी समानान्तर चैनल की उपरी रेखा के पास पॅहुचे तो निकल जाईये और जब निचली रेखा के पास पँहुचे तो नया निवेश कर डालिये. पर यह बात कहने में जितना आसान है, व्यवहार में उतना ही कठिन. मगर अभ्यास से आप इसे सहजता से प्राप्त करने लग सकते हैं, बशर्ते आप बिल्कुल शीर्ष पर बेचने और निम्नतम स्तर पर खरीदने की कुचेष्टा नहीं करें. जब आपको लगे कि बाजार बहुत तेजी से ऊपर जा रहा है तो कुछ कुछ निवेश समाप्त करते रहिये. और जब लगे कि बहुत नीचे गिर रहा है तब खरीदने की सोचिये. हाँ एकमुश्त बेचने या खरीदने की गलती मत करें. निवेश योग्य राशि पूरी की पूरी शेयरों में मत लगायें. एक उदाहरण जो मैं नौजवानों को बताता हूं वह यही कि जब आपका निवेश एक साल के फिक्स्ड डिपाजिट पर मिलने वाले ब्याज की बराबरी कर ले तब उसे एक बार तोड़ दें. हजारों स्टॉक हैं शेयर बाजार में और हर दिन कोई न कोई स्टॉक उपर जाता मिल जायेगा या नीचे गिरता मिल जायेगा. एक निवेश भँजा कर दुसरे निवेश में लगाना ज्यादा लाभदायक हो सकता है. बाकी आपकी अपनी मर्जी.

Tuesday, March 4, 2025

रहे न जब सुख के दिन ही तो...

रहे न जब सुख के दिन ही तो, कट जायेंंगे दुख के दिन भी.

प्रकृति में कुछ भी स्थायी नहीं होता. दिन के बात रात, रात के बाद दिन का क्रम अहर्निश चलते रहता है. मौसम बदलता रहता है - ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमन्त, शीत, और वसन्त. एक के बाद दूसरा मौसम आते रहता है. अलग बात है कि कुछ जगहे ऐसी भी होती हैं जहाँ सबेरे जाड़ा, दिन में गरमी, और शाम को बारिश देखने को मिल जाती है. मगर अपवाद हर नियम का हुआ करता है.

शेयर बाजार भी अजब जगह है. यहाँ जब दाम गिरते हैं, स्टॉक सस्ते हो जाते हैँ तो खरीददार नजर नहीं आते. और जब स्टॉक मंहगा होेने लगता है तो खरीददारों की लाइन लगने लगती है. अंडा पहले या मुर्गी पहले वाले सवाल की तरह इसका भी उत्तर मुश्किल से मिल पाएगा कि स्टॉक सस्ते क्यों हो जाते हैं. खरीददारों की कमी सस्ती ले आकर आती है या सस्ती के कारण खरीददार गायब हो जाते हैँ.

पर बाजार तभी चलता है, सौदा तभी होते हैँ जब कोई खरीददार हो और कोई बेचने वाला हो. बेचने वाले हर मूल्य पर मिल जाते हैँ और खरीदने वाले भी हर मूल्य पर मिल जाते हैं. खरीददार कम हों और कोई बेचने वाला हो तो उसकी वस्तु का मू्ल्य औने पौने होने लगता है. और जब स्टॉक के मूल्य आसमान छूते जैसे लगते हैं तो बेचने वालों की कमी होने लगती है. डर और लालच शेयर बाजार के मूल तत्व होते हैं. अगर किसी को लगता है कि यह स्टॉक अभी और गिरेगा तो वह बेच कर निकलना चाहता है और खरीददार सोचता है कि क्या जल्दबाजी है. बाद में जब और सस्ता हो जाय तब खरीद लेंगे. उसी तरह जब खरीदार अधिक होने लगते हैँ तो बेचने वाला सोचता है कि थोड़ी देर और देख लेता हूं, हो सकता है कि और उपर जाय. स्टॉक मूल्य की कोई उपरी सीमा नहीं होती, पर नीचे की सीमा सबका मालूम है कि शून्य के नीचे नहीं जा सकता. इस लिये खरीदने वाले को मालूम रहता है कि उसका जोखिम कितना है. पर बेचने वाले के जोखिम की कोई सीमा नहीं होती. इसलिये शेयर बाजार में बिकवाल अधिकतर फायदे में रहते हैं, पर जब नुकसान होता है तो हो सकता है कि वह बरबाद हो जाय. खरीदने वाला जानता है कि अधिक से अधिक यह मूल्य हीन हो सकता है पर उपर जाने की संभावना असीम है. यही उहापोह बाजार को चलायमान रखता है.

कुछ देर के लिये मूल मूद्दे से हट रहा हूं. मोदी पर अक्सर यह आरोप लगता है कि उन्होंने चुनाव में वायदा किया था कि हर नागरिक के खाते में पन्द्रह लाख रुपये आ जायेंगे अगर विदेशों में जमा भारत का कालाधन वापस आ जाय तो. उनके समर्थक यह कहते हैँ कि यह सिर्फ एक आंकड़ा था, वादा नहीं. चलिये थोड़ी देर के लिये मान लेते हैँ कि हर आदमी के खाते में पन्द्रह लाख आ जाते तो क्या होता ? सारे उद्योग धंधे, व्यापार बन्द हो जाते. आपको न तो नौकर मिलता, न रसोईया, न ड्राइवर, न माली, न चौकीदार. मिडास वाली कहानी तो हम सबने पढ़ी ही है जिसके छूने से हर वस्तु, जीव सोने का हो जाता था. परिणाम यह हुआ कि उसकी बेटी सोने की मूर्रत बन गई. वह न तो कुछ खा पाता था, न पी पाता था. बहुत मुश्किल से उसने इस वरदान से मुक्ति पाई थी.

ठीक उसी तरह मान लीजिये कि किसी भी स्टॉक का मूल्य कभी गिरेगा नहीं, हमेशा चढ़ता ही जायेगा तो बेचता कौन ? और कोई खरीद कैसे पाता ? अगर सबको पता रहे कि स्टॉक की कीमत गिरती हो चली जायेगी तो उसे कोई बेच कैसे पाता ? इस लिये बाजार कभी स्थायी नहीं रहता, हमेशा उतार चढ़ाव देखता-दिखाता रहता है. आजकल जब शेयर बाजार रोज नई गहराई में धँसता जा रहा है तब किसी को अपनी गलती ध्यान में नहीं आती कि जब वह सौ का स्टॉक तीन सौ, या तीन हजार मेंं ले कर बैठा हुआ था तब उसे बेचने का विचार उसके मन में कभी नहीं आया. सो अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत!

पर निराश मत होईये. रहे न जब सुख के दिन ही तो कट जायेंगे दुख के दिन भी ! पर भविष्य में ध्यान रखियेगा कि बीच बीच में अपना लाभ उठाते रहना है. हजार पाँच सौ का नोट कब बन्द हो जायेगा पता नहीं. सो बीच बीच में छुट्टा कराते रहियेगा.

दूसरे शेयर बाजार वणिकाई की जगह है या निवेश का माध्यम. जैसे निवेश के हजारों तरीके हैं और हर तरीके में मुनाफा इसी से तय होता है कि उसमें जोखिम कितना है. सरकार के बाण्ड सबसे कम ब्याज देते हैं, फिक्स्ड डिपाजिट उससे ज्यादा. जितनी लंबी अवधि का डिपाजिट कराइयेगा उतना ज्यादा ब्याज मिलेगा. जिस बैँक या उद्योग में जोखिम अधिक होगा वह आपको अधिक ब्याज देने का वादा करता है. इसलिये शेयर बाजार में बीच बीच में अपना मुनाफा कैश करते रहिये. अगर आप बैंकों से मिलने वाले सालाना ब्याज जितना मुनाफा कुछ दिन, कुछ हफ्ते, कुछ महीनों में अर्जित कर लेते हैं अपने स्टॉक से तो उसे बेच डालिये. कल फिर मौका मिल सकता है, इस में नहीं तो उसमें. अधिकतर मामलों में हर स्टॉक उपर नीचे होता ही रहता है.

शेयर बाजार में खरीद बेच करने वाले कुछ लोग कंपनी का फंडामेंटल देखते हैं तो कुछ लोग सिर्फ उसके मूल्य की चाल. मेरे विचार से क्या खरीदना है यह फंटामेंटल से तय करिये मगर कब खरीदना है या कब बेच डालना है इसके लिये टेक्निकल का सहारा लीजिये. वैसे अधिकतर ट्रेडर सिर्फ तकनीकी चाल के आधार पर सौदा किया करते हैं. उनमें से अधिकतर लोग आज का सौदा आज ही सलटा लेने में भरोसा रखता हैं. क्या पता कल क्या हो? कल का सौदा कल देखेंगे.

जब गली चौराहे, नुक्कड़ पर, चाय की दूकान पर, पानवाले के सामने शेयर बाजार की चरचा चलने लगे तो सावधान हो जाईये. जब हर आदमी खरीदने की बात करे, निवेश करने का इरादा जताने लगे, अपने मुनाफे की डींग हांकता मिल जाय तो जान जाईये गिरावट के दिन दूर नहीं हैं. और जब हर कोई माथा पीटता मिल जाये, हर कोई यही सवाल करने लगे कि क्या किया जाय? क्या सब कुछ बेच कर निकल लिया जाय? तब प्रफ्फुलित हो जाईये. शेयर खरीदने का सबसे बढ़िया समय यही होता है. याद रखिये बाजार बन्द नहीं हो रहा. कल फिर खुलेगा. मुँह माँगा दाम दीजिये मत और बेकसी में, मजबूरी में बेचिये मत.

रहिमन चुप ह्वै बैठिये, देखि दिनन के फेर,
जब नीके दिन आइहें, बनत न लगिये देर.

हां अगर मछली मारने नहीं आता तो बंसी डालने की मत सोचिये, बाजार से खरीद लाइये. अगर स्वंय फैसला नहीं ले सकते तो किसी दूसरे की सलाह पर अपनी पूंजी निवेशित मत करिये. म्युचुअल फंड, ईटीएफ में निवेश करिये. खाना बना नहीं सकते तो होटल में ढाबा में जाकर खा लीजिये, वरना कड़की में आटा गीला होते देर नहीं लगती, सब्जी जलने या चावल अधपका होने का जोखिम क्यों लीजिये. हाँ किसी से ट्रेडिंग की शैली सीखने में कोई हर्ज नहीं. मगर हमेशा याद रखिये कि कोई तरीका न तो आज तक बन पाया है, न भविष्य में बनने वाला है जो आपको हमेशा लाभ देगा. इसलिये अपने ट्रेनर को दोष मत दीजिये. डॉक्टर के हाथ में सिर्फ प्रयास करना होता है कि मरीज ठीक हो जाय. पर ठीक हो ही जायेगा इसकी गारंटी किसी भी डॉक्टर के पास नहीं मिलेगी. अगर ऐसा संभव होता तो कोई डाक्टर मरता नहीं !

बात लंबी खींच गई. कैसा लगा, बताना मत भूलियेगा.

 

उलझन सुलझे ना रस्ता सूझे ना

उलझन सुलझे ना रस्ता सूझे ना एक पुराने हिन्दी फिल्म धुंध का एक गाना था -  उलझन सुलझे ना, रस्ता सूझे ना. जाऊं कहां मैं जाऊं कहां ? मेरे दिल क...