Tuesday, March 4, 2025

रहे न जब सुख के दिन ही तो...

रहे न जब सुख के दिन ही तो, कट जायेंंगे दुख के दिन भी.

प्रकृति में कुछ भी स्थायी नहीं होता. दिन के बात रात, रात के बाद दिन का क्रम अहर्निश चलते रहता है. मौसम बदलता रहता है - ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमन्त, शीत, और वसन्त. एक के बाद दूसरा मौसम आते रहता है. अलग बात है कि कुछ जगहे ऐसी भी होती हैं जहाँ सबेरे जाड़ा, दिन में गरमी, और शाम को बारिश देखने को मिल जाती है. मगर अपवाद हर नियम का हुआ करता है.

शेयर बाजार भी अजब जगह है. यहाँ जब दाम गिरते हैं, स्टॉक सस्ते हो जाते हैँ तो खरीददार नजर नहीं आते. और जब स्टॉक मंहगा होेने लगता है तो खरीददारों की लाइन लगने लगती है. अंडा पहले या मुर्गी पहले वाले सवाल की तरह इसका भी उत्तर मुश्किल से मिल पाएगा कि स्टॉक सस्ते क्यों हो जाते हैं. खरीददारों की कमी सस्ती ले आकर आती है या सस्ती के कारण खरीददार गायब हो जाते हैँ.

पर बाजार तभी चलता है, सौदा तभी होते हैँ जब कोई खरीददार हो और कोई बेचने वाला हो. बेचने वाले हर मूल्य पर मिल जाते हैँ और खरीदने वाले भी हर मूल्य पर मिल जाते हैं. खरीददार कम हों और कोई बेचने वाला हो तो उसकी वस्तु का मू्ल्य औने पौने होने लगता है. और जब स्टॉक के मूल्य आसमान छूते जैसे लगते हैं तो बेचने वालों की कमी होने लगती है. डर और लालच शेयर बाजार के मूल तत्व होते हैं. अगर किसी को लगता है कि यह स्टॉक अभी और गिरेगा तो वह बेच कर निकलना चाहता है और खरीददार सोचता है कि क्या जल्दबाजी है. बाद में जब और सस्ता हो जाय तब खरीद लेंगे. उसी तरह जब खरीदार अधिक होने लगते हैँ तो बेचने वाला सोचता है कि थोड़ी देर और देख लेता हूं, हो सकता है कि और उपर जाय. स्टॉक मूल्य की कोई उपरी सीमा नहीं होती, पर नीचे की सीमा सबका मालूम है कि शून्य के नीचे नहीं जा सकता. इस लिये खरीदने वाले को मालूम रहता है कि उसका जोखिम कितना है. पर बेचने वाले के जोखिम की कोई सीमा नहीं होती. इसलिये शेयर बाजार में बिकवाल अधिकतर फायदे में रहते हैं, पर जब नुकसान होता है तो हो सकता है कि वह बरबाद हो जाय. खरीदने वाला जानता है कि अधिक से अधिक यह मूल्य हीन हो सकता है पर उपर जाने की संभावना असीम है. यही उहापोह बाजार को चलायमान रखता है.

कुछ देर के लिये मूल मूद्दे से हट रहा हूं. मोदी पर अक्सर यह आरोप लगता है कि उन्होंने चुनाव में वायदा किया था कि हर नागरिक के खाते में पन्द्रह लाख रुपये आ जायेंगे अगर विदेशों में जमा भारत का कालाधन वापस आ जाय तो. उनके समर्थक यह कहते हैँ कि यह सिर्फ एक आंकड़ा था, वादा नहीं. चलिये थोड़ी देर के लिये मान लेते हैँ कि हर आदमी के खाते में पन्द्रह लाख आ जाते तो क्या होता ? सारे उद्योग धंधे, व्यापार बन्द हो जाते. आपको न तो नौकर मिलता, न रसोईया, न ड्राइवर, न माली, न चौकीदार. मिडास वाली कहानी तो हम सबने पढ़ी ही है जिसके छूने से हर वस्तु, जीव सोने का हो जाता था. परिणाम यह हुआ कि उसकी बेटी सोने की मूर्रत बन गई. वह न तो कुछ खा पाता था, न पी पाता था. बहुत मुश्किल से उसने इस वरदान से मुक्ति पाई थी.

ठीक उसी तरह मान लीजिये कि किसी भी स्टॉक का मूल्य कभी गिरेगा नहीं, हमेशा चढ़ता ही जायेगा तो बेचता कौन ? और कोई खरीद कैसे पाता ? अगर सबको पता रहे कि स्टॉक की कीमत गिरती हो चली जायेगी तो उसे कोई बेच कैसे पाता ? इस लिये बाजार कभी स्थायी नहीं रहता, हमेशा उतार चढ़ाव देखता-दिखाता रहता है. आजकल जब शेयर बाजार रोज नई गहराई में धँसता जा रहा है तब किसी को अपनी गलती ध्यान में नहीं आती कि जब वह सौ का स्टॉक तीन सौ, या तीन हजार मेंं ले कर बैठा हुआ था तब उसे बेचने का विचार उसके मन में कभी नहीं आया. सो अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत!

पर निराश मत होईये. रहे न जब सुख के दिन ही तो कट जायेंगे दुख के दिन भी ! पर भविष्य में ध्यान रखियेगा कि बीच बीच में अपना लाभ उठाते रहना है. हजार पाँच सौ का नोट कब बन्द हो जायेगा पता नहीं. सो बीच बीच में छुट्टा कराते रहियेगा.

दूसरे शेयर बाजार वणिकाई की जगह है या निवेश का माध्यम. जैसे निवेश के हजारों तरीके हैं और हर तरीके में मुनाफा इसी से तय होता है कि उसमें जोखिम कितना है. सरकार के बाण्ड सबसे कम ब्याज देते हैं, फिक्स्ड डिपाजिट उससे ज्यादा. जितनी लंबी अवधि का डिपाजिट कराइयेगा उतना ज्यादा ब्याज मिलेगा. जिस बैँक या उद्योग में जोखिम अधिक होगा वह आपको अधिक ब्याज देने का वादा करता है. इसलिये शेयर बाजार में बीच बीच में अपना मुनाफा कैश करते रहिये. अगर आप बैंकों से मिलने वाले सालाना ब्याज जितना मुनाफा कुछ दिन, कुछ हफ्ते, कुछ महीनों में अर्जित कर लेते हैं अपने स्टॉक से तो उसे बेच डालिये. कल फिर मौका मिल सकता है, इस में नहीं तो उसमें. अधिकतर मामलों में हर स्टॉक उपर नीचे होता ही रहता है.

शेयर बाजार में खरीद बेच करने वाले कुछ लोग कंपनी का फंडामेंटल देखते हैं तो कुछ लोग सिर्फ उसके मूल्य की चाल. मेरे विचार से क्या खरीदना है यह फंटामेंटल से तय करिये मगर कब खरीदना है या कब बेच डालना है इसके लिये टेक्निकल का सहारा लीजिये. वैसे अधिकतर ट्रेडर सिर्फ तकनीकी चाल के आधार पर सौदा किया करते हैं. उनमें से अधिकतर लोग आज का सौदा आज ही सलटा लेने में भरोसा रखता हैं. क्या पता कल क्या हो? कल का सौदा कल देखेंगे.

जब गली चौराहे, नुक्कड़ पर, चाय की दूकान पर, पानवाले के सामने शेयर बाजार की चरचा चलने लगे तो सावधान हो जाईये. जब हर आदमी खरीदने की बात करे, निवेश करने का इरादा जताने लगे, अपने मुनाफे की डींग हांकता मिल जाय तो जान जाईये गिरावट के दिन दूर नहीं हैं. और जब हर कोई माथा पीटता मिल जाये, हर कोई यही सवाल करने लगे कि क्या किया जाय? क्या सब कुछ बेच कर निकल लिया जाय? तब प्रफ्फुलित हो जाईये. शेयर खरीदने का सबसे बढ़िया समय यही होता है. याद रखिये बाजार बन्द नहीं हो रहा. कल फिर खुलेगा. मुँह माँगा दाम दीजिये मत और बेकसी में, मजबूरी में बेचिये मत.

रहिमन चुप ह्वै बैठिये, देखि दिनन के फेर,
जब नीके दिन आइहें, बनत न लगिये देर.

हां अगर मछली मारने नहीं आता तो बंसी डालने की मत सोचिये, बाजार से खरीद लाइये. अगर स्वंय फैसला नहीं ले सकते तो किसी दूसरे की सलाह पर अपनी पूंजी निवेशित मत करिये. म्युचुअल फंड, ईटीएफ में निवेश करिये. खाना बना नहीं सकते तो होटल में ढाबा में जाकर खा लीजिये, वरना कड़की में आटा गीला होते देर नहीं लगती, सब्जी जलने या चावल अधपका होने का जोखिम क्यों लीजिये. हाँ किसी से ट्रेडिंग की शैली सीखने में कोई हर्ज नहीं. मगर हमेशा याद रखिये कि कोई तरीका न तो आज तक बन पाया है, न भविष्य में बनने वाला है जो आपको हमेशा लाभ देगा. इसलिये अपने ट्रेनर को दोष मत दीजिये. डॉक्टर के हाथ में सिर्फ प्रयास करना होता है कि मरीज ठीक हो जाय. पर ठीक हो ही जायेगा इसकी गारंटी किसी भी डॉक्टर के पास नहीं मिलेगी. अगर ऐसा संभव होता तो कोई डाक्टर मरता नहीं !

बात लंबी खींच गई. कैसा लगा, बताना मत भूलियेगा.

 

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