Thursday, June 26, 2025

उलझन सुलझे ना रस्ता सूझे ना

उलझन सुलझे ना रस्ता सूझे ना


एक पुराने हिन्दी फिल्म धुंध का एक गाना था - 

उलझन सुलझे ना, रस्ता सूझे ना.
जाऊं कहां मैं जाऊं कहां ?
मेरे दिल का अन्धेरा हुआ और घनेरा
कुछ समझ ना पाऊं क्या होना है मेरा.
खड़ी दोराहे पर, मैं पूछूं घबरा कर
जाऊं कहां मैं जाऊं कहां ?

आज के इस लेख का इस गाना से नाता बहुत सहज सा है. क्योंकि एक उलझन है जिसे मैं सुलझा नहीं पा रहा. क्या आप में से कोई है जो इस उलझन से निकलने का रास्ता सुझा सके ? 

बात शेयर बाजार से जुड़ी है. शेयर बाजार में बहुत तरह के लोग आते हैं - कुछ लोग निवेश (इन्वेस्टमेंंट) करने के लिये तो अधिकतर लोग वाणिकी (ट्रेडिंग) के लिए. पर बहुत कम लोग इस विषय पर खुल कर बात करते हैं. जैसे शराब के ठेके पर जाने वाले बहुतेरे लोग इसे स्वीकार नहीं करते कि वे शराब के ठेके पर जाते हैं. उसी तरह शेयर बाजार में हैं बहुत से लोग मगर इस पर बात करने में असहज हो जाते हैं. अपनी अक्ल और पराये का धन सबको ज्यादा लगता है. शेयर बाजार में काम करने वाले अधिकतर लोगों के साथ यही होता है कि वे अपने को सबसे अक्लवान समझते हैं और उनकी लालसा होती है कि पराये धनवान की तरह वे भी धनवान हो जाँय.

मेरे जैसे बहुत कम लोग हैं जो शेयर बाजार की चरचा खुलेआम करते हैं और इसका उद्देश्य होता है अपने अनुभवों को साझा करना साथ ही पाठकों से मिली प्रतिक्रिया के हिसाब से अपनी वाणी को नहीं तो कम से कम वाणिकी को जरुर सम्हाल सकें. शायद आप भी शेयर बाजार में निवेशक या वणिक की तरह काम करते हैँ इस लिये मैं चाहूंगा कि आप मेरी उलझन को दूर करने का प्रयास करें.

जैसे ही आप अपने ब्रोकर का ऐप पर लागिन करते हैं उसी समय सबसे पहले यह चेतावनी सामने आती है - 

ठीक उसी तरह जिस तरह सिगरेट के पैकेट पर चेतावनी छपी रहती है कि धुम्रपान स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है. सेबी कहता है कि ट्रेडिंग आपके वित्तीय स्वास्थ्य के लिये नुकसानदेह होता है. मगर सेबी यह भी मानता है कि ट्रेडिंग करने वालों में से हर दस में एक सफल हो जाता है. सिगरेट की चेतावनी में यह बात नहीं होती. 

मैं समझता हूं कि अगर सिगरेट स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है तो सरकार उसका उत्पादन ही प्रतिबन्धित क्यों नहीं कर देती. अगर वाणिकी वित्तीय स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है तो वाणिकी को प्रतिबन्धित क्यों नहीं कर देती !

मगर वास्तविकता यही है कि सिगरेट उद्योग से सरकार को भारी भरकम कर आय होती है. वाणिकी के साथ भी यही बात है. आप कुछ भी खरीदिये, कुछ भी बेचिये, नफा नुकसान आपको होगा पर ब्रोकर, शेयर बाजार, और सरकार को सिर्फ नफा होता है. चित भी उनकी, पट भी उनकी, और अंटा तो उनके बाप का होता ही है !

बहुत समय पहले कांग्रेसी सरकार के दौरान एक कानून बनाने का प्रस्ताव सामने आया था जिसमें धर्म को राजनीति से दूर करने की बात कही गयी थी. समस्या यह हुई कि जिनको रोकने के लिये यह प्रस्ताव आया था उन लोगों को इसके दायरे में लाना असम्भव हो गया. क्योंकि हिन्दूवादी ताकतों को इसकी परिभाषा में तभी बाधित किया जा सकता था जब खुलेआम कहा जाता कि हिन्दू हित की बात करना साम्प्रदायिक होगा. धर्म को परिभाषित किये बिना यह कानून बन ही नहीं सकता था और हिन्दूत्व को किसी भी परिभाषा से रिलीजन या मजहब नहीं माना जा सकता.

अब खुरपे के ब्याह में हँसुआ के गीत की बात छोड़ लौटता हूं वाणिकी पर. 

सबसे पहले तो यह परिभाषित करना होगा कि निवेश क्या है और वाणिकी क्या है ? वस्तुस्थिति यही है कि हर निवेश दीर्घकालिक वाणिकी होता है और हर वाणिकी अल्पकालिक निवेश!

निवेश करने वाला संपति अर्जित करता है जबकि वाणिकी से आय अर्जित होती है. संपति और आय में मूलभूत अन्तर यही होता है कि संंपति दीर्घकालिक लक्ष्यों की पूर्ति करती जबकि आय आपकी तत्काल जरुरतों को पूरा करने के लिये होता है. आय से  अपनी जरुरते पूरी कर लेने के बाद जो बचता है उसे ही आप निवेश करते हैं ताकि वह आपकी संपति में जुड़ जाय.

इस लेख में निवेश करने वालों के लिये कोई बात नहीं होनी है क्योंकि निवेश हर व्यक्ति अपनी पसन्द अपने रुझानों के अनुसार करता हे. यहां मैं सिर्फ उनकी बात करने वाला हूं जो अपनी आय बढ़ाने के लिये वाणिकी के रास्ते पर चलने की कोशिश करते हैं. वाणिकी किसी भी नौकरी या व्यवसाय की तरह होता है जिससे आप आय अर्जित करते हैं. और अगर आय आपकी जरुरतों से अधिक की होती है तो उस बचत को आप निवेशित कर देते है.

नौकरी सबसे अच्छी सरकारी नौकरी होती है. क्योंकि उसमें वेतन से अधिक उपरी आय का आकर्षण होता है. इसलिये सरकारी नौकरी पाना बहुत ही कठिन है. तब कुछ लोग प्राइवेट नौकरी पाने की कोशिश करते है. और सबसे सहज उपलब्ध होता है डिलीवरी ब्वाय का काम. जितनी मेहनत उतनी आय की गुंजाइश बशर्ते आर्डर मिलते रहें. 

वाणिकी भी कुछ इसी तरह का काम होता है. कोई अर्हता आवश्यक नहीं होती सिवा इसके कि आपका एक डीमैट खाता हो और थोड़ी बहुत पूंजी हो. पर ट्रेडिंग करें तो किसकी ? कुछ लोग कमोडिटी ट्रेडिंग करते हैं, कुछ करेंसी ट्रेडिंग, कुछ बुलियन ट्रेडिंग, कुछ शेयर ट्रेडिंग. पर सबसे अधिक लोग आजकल डिराईवेटिव ट्रेडिंग की तरफ आकर्षित होते हैं. जिसे आम बोलचाल की भाषा में एफ एण्ड ओ या और भी खास कहें तो आप्शन ट्रेडिंग कहते हैं. यहा मैं इसी आप्शन ट्रेडिंग की बात करूंगा. सेबी इसी आप्शन ट्रेडिंग की जोखिम से आपको सचेत करता है. 

इक्विटी ट्रेडिंग और आप्शन ट्रेडिंग में एक फर्क होता है कि इक्विटी में आप वास्तव में शेयर खरीदते या बेचते हैं. आप्शन ट्रेडिंग में आप सिर्फ खरीदने या बेचने की संभावना की बात करते हैं. यहां खरीदने वाले को छूट होती है कि वह अपने वायदे से मुकर सकता है अगर उसका नुकसान उसके द्वारा दिये गये प्रीमियम के नुकसान से अधिक होता हो. पर बेचने वाले को यह छूट नहीं मिलती. अगर खरीददार आ गया तो उसे बेचना ही पड़ेगा. इस आप्शन ट्रेडिंग में सबसे बड़ा खतरा होता है कि हर गुजरते पल के साथ प्रीमियम का नुकसान बढ़ता जाता है और अगर नियत तिथि बीत गई तो आपका पूरा प्रीमियम स्वाहा हो जाने का जोखिम होता है. इक्विटी ट्रेडिंग में यह जोखिम नहीं होता. वहां ट्रेडिंग करने वाले लोग नुकसान की स्थिति में निवेशक बन जाते है! अलग बात है कि शेयर मूल्य कितना गिरेगा या कब तक गिरा रहेगा यह कोई नहीं जानता.

इक्विटी ट्रेडिंग करने के लिये अपेक्षाकृत अधिक पूंजी की आवश्यकता होती है अगर आप एक अच्छी आय की संभावना तलाशते है. इसमे आप पर दबाव नही होता कि आनन फानन में कोई फैसला करे. पर आप्शन ट्रेडिंग मे आप कबड्डी खेल सकते है क्रिकेट नहीं. आप तभी तक विरोधी खेमे  मे हुंकार भर सकते है जब तक आपका दम बचा हुआ है. वहां अभी नहीं तो बाद मे देख लेगें, कल फैसला कर लेगें वाली सुविधा नहीं होती. 

पर अगर आप आप्शन ट्रेडिंग से आशातीत सफलता की आकांक्षा न रखते हुये छोटी छोटी आय या छोटा छोटा नुकसान की सीमा बान्ध लेते है तो यह इक्विटी से अधिक फायदेमन्द हो सकता है. दो से पांच फीसदी की आय या नुकसान की सीमा में रहें तो आप दीर्घकालिक लाभ पा सकते है.

यह मेरा विचार है. पर आप क्या कहते है ? क्या सोचते है ? संवाद दोतरफा हो तो दोनों पक्षों के लिये सही होता है. आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी. 

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