Saturday, December 14, 2024

इतिश्री

इतिश्री का अर्थ होता है समापन.  जब कथा का अन्त होता है तो कथावाचक कहता है - इतिश्री.


तो मैंने इस ब्लॉग का नाम इतिश्री क्यों रखा जब यह शुरु होने जा रहा है. प्रश्न स्वाभाविक है ओर मेरा उत्तर कबीरदास के इस दोहे में छिपा हुआ है -

कबीरा खड़ा बाजार में, लिये लुकाठी हाथ.
जो घर जारे आपना, चले हमारे साथ.

ऐसा तो नहीं था कि कबीरदास आपका या मेरा घर जलाना चाहते थे, या हमें उकसाना चाहते थे कि हम अपना घर जला दें. विचारक या दार्शनिक कई बार अपनी बातें इस तरह से कहते हैं कि हर कोई उसे सहजता से नहीं समझ पाता. छायावादी कवियों की भी परम्परा रही है कि वे कोई बात इस अन्दाज में कहते हैं कि मियां बूझे प्याज, बेगम बूझे अदरख ! यानि कि -

लाली मेरे लाल की, जित देखो तित लाल.
लाली देखन मैं गई मैं भी हो गई लाल.

या फिर -

जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखिन तिन तैसी.

इतनी भूमिका के बाद स्पष्ट कर दूं कि न तो मैं दार्शनिक हूं, न विचारक, न छायावादी कवि. मैं तो जीवन के उत्तरार्ध में अपने जीवन के अनुभवों को आपसे साझा करना चाहता हूं. और यह अनुभव सिर्फ वाणिकी के हैं. वाणिकी माने शेयरों की खरीद बिक्री से आय कमाने का तरीका. और न तो मैं सेबी से प्रमाणित हूं, न स्वीकृत सलाहकार. इसलिये यहां किसी शेयर विशेष को खरीदने या बेचने की सलाह न दी जाती है, न देने की मंशा है. आगे आपकी मर्जी, आप मेरे अनुभवों को किस तरह लेते हैं. अगर पसन्द आये तो आते रहिये, अपने मित्रों से साझा करते रहिये. न पसन्द आये तो नीचे कमेंट बॉक्स में दर्ज कर दीजिये. इससे मैं अपनी कमियों को दूर कर पाऊंगा. आपके आने और पढ़ने के लिये धन्यवाद !

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